Wednesday, November 15, 2017

चित्तौड़गढ़ दुर्ग विवाह | पदमावती जौहर



जब किले में रसद सामग्री समाप्त हो गई, और चित्तौड़गढ़ (मेवाड़) के रावल रतनसिंह सभी मनसबदारों, और सेनापति सरदारों से मन्त्रणा कर के इस नतीजे पर पहूँचे कि, धोखा तो हमारे साथ हो चुका है। हमने वही भूल की जो हमारे पूर्वज करते रहे परंतु धर्म यही कहता है कि अतिथि देवो भव ओर शत्रु ने हमारी पीठ मे छूरा घोंपा है,हम ने धर्म की रक्षा की धर्म हमारी रक्षा करेगा... सबसे बड़ी बात कि हमारी सारी योजनाए निष्फल होती जा रही है, क्योंकि कोई भी सेना बिना भोजन के युद्ध लड़ना तो दूर ज़िन्दा भी नही रह सकती।
और हमने बहुत प्रयास कर लिए की युद्ध ना हो एक राजपूत स्त्री को विधर्मी देखे यह असहनीय कृत्य भी हम सहन कर चुके है परंतु विधि का कुछ और ही विधान है जो हमारा मूल धर्म भी, ह़ैे शायद भवानी रक्त पान करना चाहती है, और चित्तोड़ दुर्ग का कोमार्य भंग होने का समय आ गया है।
रतन सिंह के मुख को निहार रही थी समस्त सेना ओर कुछ अद्भूत सुनने की अभिलाषा हो रही थी।
रावल ने कहा- हम परम सौभाग्यशाली है;जो दुर्ग के विवाह का अवसर महादेव ने हमें दिया है, इसे रक्त के लाल रंग ओर जौहर की गुलाल से सुसज्जित करने की तैयारी हो और महाकाल के स्वागत मे नरमुंड की माला अर्पित करने का अवसर ना चुके कोई सेनानी...
हमें अब अपनी रजपूती को लाज्जित नहीं करना।
प्रात: किले के द्वार खोल दिये जाये, और अपने आराध्य का स्वागत केशरिया बाना पहन कर करे जौहर कुंड को सजाया जाये महाकाल के प्रसाधन में रूपवातियों के देह की दिव्य भस्म गुलाल तेैयार की जाये..
और इतना सुनते ही मर्दाना सरदारो के आभा मंड़ल पर दिव्य तेज बिखर गया, और जनाना सरदार अपने दिव्य जौहर की कल्पना में आत्म विभोर हो उठे,, बात रनिवास तक पहुँची पूरे दुर्ग मे एक दिव्य वातावारण बन गया हर एक वीर ओर वीरांगना हर्ष और उल्लास से भरपूर हर हर महादेव के नारे लगाने लगे, मानो इसी दिन का इंतजार कर रहे हो।
हर कोई महादेव का वरण करने को वंदन करने को आतुर था।
और बादल बोल उठा मैंने तो पहले ही कहा था ,ये तुर्क विश्वास के लायक नहीं परंतु मेरी किसी ने नहीं मानी राजपूत वीरों की भुजायें फड़कने लगी ओर नेत्रों मे शत्रु के चित्र उतर आये।
मानो विवाह की तैयारियों में डूब गया किला,किले को सजाने में लग गए समस्त किलेवासी कहीं आने वाले के दीदार में कोई कमी ना रह जाये, मेरे महाकाल आने वाले है। 
इतना व्यस्त तो दुर्ग राजतिलक के समय भी नही रहा होगा और इतनी ख़ुशी तो राजकुमार के जन्म पर भी नहीं थी।
वाह। कितना सुन्दर दिख रहा है दुर्ग,इसका विवाह जो है लो मुहूर्त भी निकल आया ब्रह्म मुहूर्त..
राजपूत अपनी तलवारों बरछो, भालों को चमकाने में और केशरिया बाना बांधने में..
तो क्षत्राणियां अपने अपने संदुको से विवाह के लाल, हरे जोड़े निकाल कर एक दूसरे को दिखाती हुई पूछ रही थी मुझ पर ये कैसारहेगा? ननदें अपनी भाभीयों को सजाने में तो भाभीयाँ अपनी ननदों को संवारने में व्यस्त हो गई, रखडी़, गोरबंद, झूमका, बिन्दी, नथनी, टीका, पायजेब, चुडी़ ,कंगन, बिछुडी़, बाजूबंद, हार, और मंगलसूत्र सजने लगे...
हर स्त्री को इतना सजने की ललक को फेरों के समय भी नहीं थी उस दिन भी किसी के लिये सजना था ओर आज भी 
लेकिन उस दिन पीहर से बिछड़ने का गम था आज तो बस मिलन ही मिलन है। 
पूरे किले मे एक अभूतपूर्व महोत्सव की तैयारियां हो रही थी मानो ये अवसर बड़ी मुश्किल से मिला हो ओर चेहरो की रौनक ऐसी कि कल बारात में जाने की उत्सुकता हो।
कुंड पर चन्दन की लकड़ियाँ नारियल, देशी घी, और पूजन की सामग्री इकट्ठी की गई गंगा जल के कलश, और तुलसी पत्र की व्यवस्था सुनिश्चित की गई, राज पुरोहित ने रनिवास में ख़बर भेजी की जौहर सूर्य की पहली किरण के दर्शन करने उपरांत शुरू हो जायेगा और अग्रिम और अंतिम पंक्ति महारानी सुनिश्चित करे।
जैसे युद्ध में हरावल में रहने की होड़ रहती है जोहर में भी प्रथम पंक्ति में रहने की और महारानी के साथ रहने की होड़ मच गई।

ढ़ोल, नंगाड़े,शाहनाइयाँ और मृदंग बजने लगे, हाथी , घोडे़ और सवार सजने लगे, परंतु सबसे ज्यादा उत्साह तो औरतों में था।
सुबह होने वाली थी ब्रह्म मुहूर्त ना चुक जाये सभी सती स्त्रियों ने अंतिम बार अपने सुहाग के दर्शन किए महारानी पदमावती ने रावल के चरणों का वन्दन किया और फिर मुड़ कर नही देखा रतन सिंह कुछ कहना चाहते थे परंतु भवानी के मुख का तेज देख उनका मुँह ना खुल पाया, आज पद्मिनी उनको अपनी पत्नी नही महाकाली सी प्रतीत हो रही थी, हो भी क्यों ना? महाकाल की भस्म बनने जो जा रही हैे उनमें विलीन होने जा रही है। 
जौहर स्थल पर स्वस्थी वाचन शुरू हुआ पुरोहितों की टोली ने वैदिक मंत्रो से पूजन शुरू करवाया और मुख मे़ तुलसी पत्र, गंगा जल, हाथ में नारियल पकड़कर सूर्य की ओर मुख करके प्रथम पंक्ति महारानी" पदमावती "के साथ तैयार थी। मोक्ष के मार्ग पर बढ़ने को तैयार थी ।
सनातन धर्म की हिन्दू धर्म की अस्मिता और रघु कुल की आन शान की रक्षा करने को, सनातन धर्म के लिये स्वयं की अाहुती देने को अग्नि मंत्रोचार के साथ प्रज्वलित कर दी गई और उसमें नारियल, घी डाल दिया गया। अग्नि की लपटे भगवा रंग की मानो सूर्य का अरूणोदय स्वरूप अस्ताचल में जाने को आतुर हो और अंधकार मेवाड़ को अपनी आगोश में लेने का अन्देशा देता हो, वैदिक मंत्र सुन प्रथम पंक्ति की क्षत्राणियाँ कूद पडी अग्नि में क्षण भर मे स्वाहा...हो गई अग्नि सी पावन अग्नि में मिल गई।
अग्नि और घृत का मिलन देह को क्षण भर में ही भस्म बना रही था देखते ही देखते एक कुंड मे 16000 क्षत्राणियाँ भस्म बन गई और पूरे दुर्ग पर एक दिव्य सुगन्ध फैल गई जो पूर्व में कभी किसी ने महसूस नहीं की थी।
उनके मुख पर इतना तेज था की अग्नि भी मंद पड़ जाये,पुरोहित के स्वाहा के साथ ही सभी देवियों ने अपने तन की अाहुतियाँ दे दी।

अभी विवाह की एक रस्म बाकी थी दुर्ग पर फैली दिव्य सुगंध ने सभी रजपूतों को कसुमापान करने पर मजबुर कर दिया,,,, भस्म तैयार थी अब महाकाल के स्वागत की बारी थी ....
अपनी 80 साल की माँ ओर 19 साल की पत्नी के जौहर की तैयारी कर रहे "बादल" के नेत्रों में मानो जल सुख गया उसने अपनी माँ से पुछा आप कब पधारेंगे माँ जो अपने बुड्ढे हाथों से अपनी चोटी बना रही थी अपने पुत्र को देखकर बोली तु एक बार अपनी पत्नी से बात तो कर ले,अभी कोई 4 साल ही हुए थे बादल के विवाह को और बादल के नाक पर हर दम गुस्सा रहता था कभी हिम्मत नही हुई पंवारनी जी की बादल से बात करने की ओर ना कभी बादल को फुर्सत मिली जबकी दो बच्चों के बाप बन गए थे, बादल, पंवार जी के पास पहुँच बादल कुछ बोलना चाहता था उससे पहले पंवारनी जी बोल उठी, आप को मैंने बहुत दु:ख दिया है, इतना कहते ही बादल, ने मुट्ठी दीवार पर दे मारी और बोल पडा़ पहली बार की मैंने आप को एक औरत समझा आप को बोलने नहीं दिया कभी ओर 3 बर्ष से आपको पीहर भी नहीं जाने दिया, मैंने सीधे मुँह कभी आपसे बात नहीं की, बादल का हाथ पकड़कर, पंवारनी जी बोली आप मन भारी ना करे मैं मोक्ष के मार्ग पर जा रही हूँ , मुझे कमजोर ना करे, आप ऊपर से सख्त बनकर रहे परंतु मुझे पता है आप अंदर से कितने नर्म है?एक स्त्री अपने पति को सबसे बेहतर समझ ले यही उसके जीवन का सार है। आप मिनाल ओर किरानं को संभाले मैं उनको देख कमजोर ना पड जाऊ।

जब तक बादल की माँ तैयार हो जौहर कुंड पर आ गई, बादल के सामने पतराय आंखो से देखकर सोचने लगी कभी सुख नहीं मिला मेरे बेटे को 3साल की उम्र मे पिता चल बसे अब 3-4 साल के अपने ही बच्चों को अपने हाथों कैसे मारेगा?इतने में माँ और पत्नी अग्नि में प्रवेश कर गई। उसके सामने उसका स्वाहा हो गया।
पत्नी से अपने बच्चों को छुड़ा कर बादल ने सोचा मैं सोचता था आदमी शक्तिशाली होता है; लेकिन आज पता चला कि औरत को शक्ति क्यों कहते है?असल में शक्ति का अवतार होती है। क्षत्राणियों आदमी अंदर से बहुत कमजोर होता है, मैं अपने बच्चों को धार स्नान नहीं करवा सकता ये सोच अपने दोनों बच्चों को अग्नि- कुंड के पास ले गया और मिनाल को अंदर फेंकने लगा उसने अपने बाबोसा के कुर्ते को पकड़ लिया और कहने लगी मैं अब लड़ाई नहीं करूँगी, आप कहोगे वहीं करूँगी मैं किरानं को कभी नही मारूँगी बाबोसा मुझे मत मारो और बादल ने एक झटके से अपना हाथ छुडा़ लिया और एक चीख के साथ...... फिर मासुम 3 साल का किरानं जो सब समझ चुका था मासुम निगाहों से अपने बाप को देख कर बोला बाबोसा मे बडा़ हो कर आप के साथ इन तुर्को को मारूँगा मैं तो आदमी हूँ, बादल ने उसे भी धक्का दे दिया।

तब तक सारा जौहर सम्पूर्ण हो चुका था और रजपूतों के लिये खो ने को कुछ नहीं बचा था।
राजपूती वीरों ने तलवारों से अपने हाथों को ओर घोड़े से पीठ को बांध लिया था हर हर महादेव के जयकारों के साथ केशरिया बाना पहन कर कसुमापान कर वीर कूद पडे़ समरांगण मे एक एक ने 100-100 को मारा परंतु संख्या मे तुर्क ज्यादा थे।
फिर चढ़ाने लगे नरमुंडो के हार और लाल रक्त से महाकाल के स्वागत मे पूरे द्वार को रंग दिया 30000 नर मुंडो से स्वागत किया अपने आराध्य का और दुर्ग का विवाह सम्पन्न हुआ,महाकाल के स्वागत में यही तो होता है ;भस्म रक्त, नरमुंड और बाजों में कुत्तों का सियारों का विलाप मूर्त लाशों को काल भैरव के कुत्ते खूब आनन्द से खा रहे थे..
दुर्ग अब कुँवारा नहीं रहा आज उसका विवाह हो गया ऐसे ही होता है ;दुर्ग का विवाह अब ये कौन कह रहा है कि द्वार खिलजी के स्वागत मे खोले गए? 
हा हा हा हा हा उसे कौन समझाये ? नादान जो ठहरा .....
खिलजी को यह महसूस हो गया की चित्तौड़ ने उसके लिये नहीं किसी और के स्वागत में द्वार खोला है वो ठगा सा दुर्ग के दृश्य को निहारने लगा और सोचने लगा ये इंसान नहीं हो सकते, 
ये तो दिव्य लोक के देवता हैं।
उसे मन में ग्लानि हो उससे पहले एक विचार आया की ये मेरी वजह से नहीं किसी और के लिए था।
मैं गुरूर करने लायक भी नहीं,लौट गया नमन कर चित्तौड़ को..
खिलजी ने चित्तौड़ में प्रवेश किया परंतु उसके स्वागत मे कुत्ते भी नहीं आये क्योंकि वो महाभोज का आनन्द ले रहे थे फिर दुर्ग के विवाह में मेहमान बनकर आया खिलजी ऐसा अद्भूत नजारा देख दुर्ग में एक रात भी नहीं गुजार पाया।

Wednesday, February 8, 2017

सर्जिकल स्ट्राइक की कहानी: अमावस्या का इंतजार, 48 घंटे तक दुश्मन पर नजर, फिर मौत बनकर यूं बरसे भारतीय कमांडोज

दुश्मन पर आसमान से सटीक हमले करने के लिए मशहूर भारतीय सेना की विशिष्ट सैन्य टुकड़ी 'पैराशूट रेजिमेंट' की बहादुरी की अनगिनत कहानियों में अब एक और पन्ना जुड़ गया है। दरअसल, बीते साल 29 सितंबर को लाइन ऑफ कंट्रोल के दूसरी ओर आतंकियों के लॉन्च पैड्स को तबाह करने गई टीम में इस रेजिमेंट के जवान भी शामिल हैं। पैरा कमांडोज और पैराट्रूपर्स से लैस इस टीम को इस साल 26 जनवरी को सम्मानित किया गया। कई अफसरों को मेडल्स से नवाजा गया है।


इस ऑपरेशन की प्लानिंग और उसे अंजाम देने में बहुत सारे लोगों का हाथ है। हालांकि, फील्ड में जाकर दुश्मनों पर मौत बनकर बरसे इन कमांडोज को मेडल्स क्यों मिले, यह बताने के लिए सरकार ने इस ऑपरेशन के डिटेल्स शेयर किए हैं । इससे जुड़े दस्तावेज द टाइम्स ऑफ इंडिया के पास हैं। दस्तावेज से पता चलता है कि सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम देने में 19 पैरा कमांडोज का अभिन्न योगदान है। डॉक्युमेंट्स में इस ऑपरेशन को फील्ड में अंजाम देने की पूरी कहानी दर्ज है। इसके मुताबिक, पैरा रेजिमेंट के 4th और 9th बटैलियन के एक कर्नल, पांच मेजर, दो कैप्टन, एक सूबेदार, दो नायब सूबेदार, तीन हवलदार, एक लांस नायक और चार पैराट्रूपर्स ने सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया।

4th पैरा के अफसर मेजर रोहित सूरी को कीर्ति चक्र और कमांडिंग ऑफिसर कर्नल हरप्रीत संधू को युद्ध सेवा मेडल से नवाजा गया है। इस टीम को चार शौर्य चक्र और 13 सेवा मेडल भी दिए गए हैं। कर्नल हरप्रीत संधू को लॉन्च पैड्स पर दो लगातार हमले करने का काम सौंपा गया था। हमले की योजना बनाने और उसके सफल क्रियान्यवन के लिए ही उन्हें युद्ध सेवा मेडल से नवाजा गया है।

जम्मू-कश्मीर के उड़ी में सेना के कैंप पर हुए आतंकी हमले के बाद से ही भारतीय सेना ने पाक अधिकृत कश्मीर स्थित टेरर लॉन्च पैड्स पर सर्जिकल स्ट्राइक करने की योजना बनानी शुरू कर दी थी। हालांकि, मिशन को अंजाम देने के लिए अमावस्या की रात का इंतजार किया गया।
आखिरकार वह घड़ी आ ही गई। 28 और 29 सितंबर की दरमियानी रात को मेजर रोहित सूरी की अगुआई में आठ कमांडोज की एक टीम आतंकियों को सबक सिखाने के लिए रवाना हुई।

मेजर सूरी की टीम ने पहले इलाके की रेकी की। सूरी ने टीम को आदेश दिया कि वे आतंकियों को उनके एक लॉन्चपैड पर खुले इलाके में चुनौती दें। सूरी और उनके साथी टार्गेट के 50 मीटर के दायरे के अंदर तक पहुंच गए और वहां दो आतंकियों को ढेर कर दिया। इनको ठिकाने लगाते ही मेजर सूरी ने पास के जंगलों में हलचल देखी। यहां दो संदिग्ध जिहादी मौजूद थे। उनके मूवमेंट पर एक यूएवी के जरिए भी नजर रखी जा रही थी। सूरी ने अपनी सेफ्टी की परवाह न करते हुए दोनों आतंकियों को नजदीक से चुनौती दी और उन्हें भी ढेर कर दिया। 

एक अन्य मेजर को यह जिम्मेदारी दी गई थी कि इन लॉन्चपैड्स पर नजदीक से नजर रखे। यह अफसर अपनी टीम के साथ हमले के 48 घंटे पहले ही एलओसी पार कर गया। इसके बाद से हमले तक इस टीम ने टार्गेट पर होने वाले हर मूवमेंट पर नजर रखी। उनकी टीम ने इलाके का नक्शा तैयार किया। दुश्मनों के ऑटोमैटिक हथियारों की तैनाती की जगह का पता लगाया। उन जगहों की भी जानकारी जुटाई, जहां से हमारे जवान मिशन के दौरान सुरक्षित रहकर दुश्मन पर फायरिंग कर सकें।

इस अफसर ने एक हथियार घर को तबाह कर दिया। इसमें दो आतंकी मारे गए। हमले के दौरान यह अफसर और उनकी टीम नजदीक स्थित एक अन्य हथियार घर से हो रही फायरिंग की जद में आ गए। अपनी टीम पर मंडरा रहे खतरे को भांपते हुए इस मेजर ने बड़ा साहसिक कदम उठाया। वह अकेले ही रेंगते हुए इस हथियार घर तक पहुंचा और फायरिंग कर रहे उस आतंकी को भी खत्म कर दिया। इस अफसर को शौर्य चक्र से नवाजा गया है।

तीसरा मेजर अपने साथी के साथ एक आतंकी शेल्टर के नजदीक पहुंचा और उसे तबाह कर दिया। इस वजह से वहां सो रहे सभी जिहादी मारे गए। इसके बाद, उसने हमला करने वाली दूसरी टीमों के सदस्यों को सुरक्षित जगह पर पहुंचाया। यह अफसर ऑपरेशन के दौरान आला अधिकारियों को ताजा घटनाक्रम के बारे में लगातार अपडेट देता रहा। इस मेजर को भी शौर्य चक्र मिला है।

चौथे मेजर को सेना मेडल मिला है। उसने दुश्मनों के ऑटोमैटिक हथियार से लैस एक ठिकाने को बेहद नजदीक से एक ग्रेनेड हमले में तबाह कर दिया। इसमें दो आतंकी मारे गए।

यह सर्जिकल स्ट्राइक इतना आसान ऑपरेशन भी नहीं था। हमला करने वाली एक टीम आतंकियों की जोरदार गोलाबारी में घिर गई। पांचवें मेजर ने तीन आतंकियों को रॉकेट लॉन्चर्स के साथ देखा। ये आतंकी चौथे मेजर की अगुआई में ऑपरेशन को अंजाम दे रही टीम को निशाना बनाने वाले थे। हालांकि, इससे पहले कि ये आतंकी कुछ कर पाते, पांचवें मेजर ने अपनी सेफ्टी की परवाह न करते हुए इन आतंकियों पर हमला बोल दिया। दो को उसने ढेर कर दिया, जबकि तीसरे आतंकी को उसके साथी ने मार गिराया।

इस मिशन में न केवल अफसरों, बल्कि जूनियर अफसरों और पैराट्रूपर्स ने भी अदम्य साहस का परिचय दिया। शौर्य चक्र से सम्मानित एक नायब सूबेदार ने आतंकियों के एक ठिकाने को ग्रेनेड बरसाकर तबाह कर डाला। इसमें दो आतंकी मारे गए। जब उसने एक आतंकी को अपनी टीम पर फायरिंग करते देखा तो उसने अपने साथी को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया। इसके बाद उसने आतंकी पर हमला बोल दिया और उसे ठिकाने लगा दिया।

इस ऑपरेशन के दौरान किसी भी भारतीय जवान को अपनी शहादत नहीं देनी पड़ी। हालांकि, निगरानी करने वाली टीम का एक पैराट्रूपर ऑपरेशन के दौरान घायल हो गया। उसने देखा कि दो आतंकी हमला करने वाली एक टीम की ओर बढ़ रहे हैं। पैराट्रूपर ने उनका पीछा किया, लेकिन गलती से उसका पांव एक माइन पर पड़ गया। इस धमाके में उसका दायां पंजा उड़ गया। अपनी चोटों की परवाह न करते हुए इस पैराट्रूपर ने आतंकियों से मोर्चा लिया और उनमें से एक को ढेर कर दिया।

(कुछ सैनिकों के नाम उनकी पहचान छिपाने के मकसद से नहीं छापे गए हैं।)

Source : http://nbt.in/j9RRYZ/kcf